इटारसीएक घंटा पहले
कॉपी लिंक
नेचुरल फूलों की जगह प्लास्टिक के फूलों ने ली है। इस वजह से नर्मदापुरम जिले में इटारसी के मेहरागांव के लोग खासे परेशान हैं। यहां माली मोहल्ले में रहने वाले परिवारों का मुख्य व्यवसाय फूलों की खेती है। अब फूलों की मांग कम होने की वजह से उन्हें फूलों के दाम भी पहले जैसे नहीं मिल रहे हैं।
मंडी में नौरंगा फूल 5 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिक रहे हैं। इससे फूलों की खेती करने वाले इन परिवारों पर आर्थिक संकट आ रहा है। फूलों की खेती करने वाले मंगल सिंह सैनी ने बताया कि अपने दादा, पिता से विरासत में मिली फूलों की खेती मिली। परिवार उसी को आगे बढ़ाने में दिन-रात लगा हुआ है। बाजारों में प्लास्टिक फूलों की डिमांड और कम दामों में मिलने से अब खर्च भी नहीं निकल रहा है।
1 एकड़ में 40 से 50 हजार का खर्च
मंगल सिंह सैनी ने बताया कि 1 एकड़ में फूलों की खेती करने पर उन्हें 40 से 50 हजार का खर्च आता है। खेत में नौरंगा फूल लगाए हैं। जनवरी में नौरंगा लगाया था, अब खेत में फूल खिल रहे हैं। 5 रुपए किलो बिकने से परेशानी है।
मंदिर, विवाह के स्टेज से लेकर घर तक प्लास्टिक के फूल
हेमंत सैनी, संजू सैनी, गणेश सैनी, तुलसीराम सैनी, अयोध्या प्रसाद सैनी, सुरेश सैनी ने बताया कि इन दिनों प्लास्टिक के फूल ने भगवान के मंदिरों से लेकर शादी विवाह के स्टेज तक जगह ले ली है। शुभ मंगल कार्य के लिए तोरण द्वार भी अब प्लास्टिक के फूल से सजने लगी है। इसकी वजह से अब उनके फूलों की डिमांड कम हो गई है। पहले शादी के लिए कार स्टेज और मंदिर घरों में फूलों से ही सजाया जाता था, लेकिन प्लास्टिक के फूल बाजार में आने से हमारा कारोबार अब पहले जैसा नहीं रहा है।
1.50 रुपए में खरीदा एक पौधा
मेहरागांव में करीब 12 परिवार ने जनवरी महीने में रतलाम, इंदौर से 1 से 1.50 रुपए प्रति पौधे के हिसाब से नौरंगा के पौधे लेकर आए थे। 10 हजार रुपए में आधा एकड़ में नौरंगा लगाया। दिन-रात की मेहनत की पानी दिया। परिवार के सभी लोग इस कार्य में लगे रहे। जब फूल तैयार हुआ तो मार्केट में इसके रेट कम मिल रहे हैं।
पिछले साल 20 रुपए किलाे बिका
मंगल सिंह ने बताया कि पिछले साल यही नौरंगा 20 रुपए किलो बिका था। उन्होंने बताया कि कोरोना में उन्हें फूलों की खेती से काफी नुकसान हुआ। अब 1 एकड़ में फूल का बगीचा तैयार करने में लागत ज्यादा लग रही है। मुनाफा कम हो रहा है। खेत में पौधों को लगाने के अलावा पौधों की साफ-सफाई, यूरिया, कीटनाशक, दवाई का छिड़काव के अलावा बिजली और पानी साथ साथ तोड़ना महंगा पड़ रहा है।