देहरादून, उत्तराखंड में नगर निकाय के चुनाव उनके कार्यकाल खत्म होने से पहले करवाने से राज्य सरकार ने हाथ खींच लिये हैं। अब प्रशासक ही स्थानीय निकायों का कामकाज देखेंगे। एक दिसंबर को निकायों का कार्यकाल समाप्त होते ही सरकार इनमें प्रशासक तैनात कर देगी। शहरी विकास निदेशालय ने भी शासन को दो दिसंबर से छह महीने के लिए निकायों में प्रशासक तैनात करने का प्रस्ताव भेज दिया है।
शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने इसकी पुष्टि की है। ऐसे में स्पष्ट है कि निकाय चुनाव अगले वर्ष लोकसभा चुनाव के बाद ही हो पाएंगे। गौरतलब है कि प्रदेश में करीब 84 नगर निकाय के बोर्ड का कार्यकाल एक दिसंबर को पूरा हो जाएगा। नियमानुसार 84 नगर निकायों के चुनाव दो दिसंबर से पहले कर दिये जाने चाहिये थे। लेकिन, अभी निकायों में ओबीसी आरक्षण तय करने के लिए गठित एकल आयोग भी अपना सर्वे समय पर पूरा नहीं कर पाया है। राज्य सरकार भी निकाय चुनाव को पीछे धकेलने के मूड में थी। राज्य सरकार की प्राथमिकता लोकसभा चुनाव पर फोकस करना है। स्थानीय निकाय चुनाव लिटमस पेपर टेस्ट हो सकता था, इसलिए भी सरकार इससे कुछ समय के लिये बचना चाह रही थी।
नैनीताल हाईकोर्ट में भी राज्य सरकार की ओर से लंबित रिटो में आरक्षण तय न हो पाने का तर्क दिया गया है। राज्य सरकार का तर्क है कि वे आरक्षण को किसी भी हालत में नहीं छोड़ना चाहती है और न इसमें गड़बड़ी की गुंजाइश रखना चाहती है। इसके अलावा राज्य निर्वाचन आयोग ने भी निकाय चुनाव के लिए मतदाता सूची तैयार करने के लिए कार्यक्रम तैयार करने में पहले ही देरी कर दी थी। अब शहरी विकास मंत्री प्रेम चंद अग्रवाल ने भी स्वीकार किया कि आरक्षण व मतदाता सूची बनाने की प्रक्रियाओं के गतिमान होने की वजह से तय समय पर चुनाव कराना ममकिन नहीं है।

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