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धर्म–संस्कृति

भगवान के साथ मानवीय रिश्ते बनाकर ,उनकी पूजा अर्चना और उनके साथ आनंद मानाने का त्यौहार है , सातू आठू त्यौहार*

*भगवान के साथ मानवीय रिश्ते बनाकर ,उनकी पूजा अर्चना और उनके साथ आनंद मानाने का त्यौहार है , सातू आठू त्यौहार*
चमोली ( प्रदीप लखेड़ा )
भगवान के साथ मानवीय रिश्ते बनाकर ,उनकी पूजा अर्चना और उनके साथ आनंद मानाने का त्यौहार है , सातू आठू त्यौहार। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ व् कुमाऊँ के सीमांत क्षेत्र में मनाया जाने वाला यह त्यौहार प्रतिवर्ष भाद्रपद की पंचमी से शुरू होकर अष्टमी तक चलता है।
सातू आठू पर्व में महादेव शिव को भिनज्यू (जीजाजी ) और माँ गौरी को दीदी के रूप में पूजने की परम्परा है। सातो आठो का अर्थ है सप्तमी और अष्टमी का त्यौहार। भगवान शिव को और माँ पार्वती को अपने साथ दीदी और जीजा के रिश्ते में बांध कर यह त्यौहार मनाया जाता है। यही इस त्यौहार की सबसे बड़ी विशेषता है। कहते है ,जब दीदी गवरा( पार्वती ) जीजा मैशर (महेश्वर यानि महादेव ) से नाराज होकर अपने मायके आ जाती है ,तब महादेव उनको वापस ले जाने ससुराल आते है। दीदी गवरा की विदाई और भिनज्यू (जीजाजी) मैशर की सेवा क रूप में यह त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार कुमाऊँ सीमांत में सांतू आंठू के नाम से तथा ,नेपाल में गौरा महेश्वर के नाम से मनाया जाता है। इस लोक पर्व को गमारा पर्व भी कहा जाता है।

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