*डाली से गिरते हुए पत्तों ने क्या खूब कहा:*
कर्म करना प्रकृति का नियम है
इन्हीं पत्तों के कारण हमें भोजन मिला
छोटे से पौधे से हम एक पेड़ बने
फले फूले और खूब खिले
अब है हमारे निर्वाण की तैयारी
चलते हैँ अब नयी खोज मे
अब है कुछ और नए पत्तों की बारी
*डाली से तोड़े हुए फलों ने तब क्या खूब कहा :*
अपने जीवन को भरपूर जिया
सबको खट्टा मीठा फल दिया
अब आई मुक्ति की बारी
फिर से एक और नये जीवन की तैयारी
*स्वरचित – मन की लेखनी से अर्चना गुप्ता*
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